Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
प्रेमानंद जी महाराज की प्रेरणा: आजकल हम देखते हैं कि कई लोग गलत तरीके से धन कमाकर भौतिक सुख का आनंद ले रहे हैं। उनके पास महंगी गाड़ियां, आलीशान घर और बहुत सारा पैसा है। लेकिन क्या ये लोग सच में खुश हैं? वहीं, जो लोग ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं, उन्हें अक्सर संघर्ष और दुख का सामना करना पड़ता है। उनके जीवन में धन और भौतिक सुख की कमी होती है।
भौतिक सुख और असली सुख का अंतर
महाराज प्रेमानंद जी का कहना है कि, 'जो सुख इंद्रियाओं को भाता है, वह क्षणिक है। असली सुख तो आत्मा से आता है।' पैसे से हम अच्छे कपड़े और स्वादिष्ट खाना तो खरीद सकते हैं, लेकिन क्या ये असली सुख हैं?
नहीं, ये केवल मन और शरीर के सुख हैं, जो जल्दी खत्म हो जाते हैं। शरीर एक दिन समाप्त होगा, और मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं। इसलिए भौतिक सुख का आनंद अस्थायी होता है। पाप की कमाई से मिले सुख में अक्सर भय और चिंता छिपी होती है। ऐसे लोग, जो गलत तरीके से धन कमाते हैं, हमेशा डरते रहते हैं कि कहीं उनका धन खो न जाए।
सत्कर्म से मिलने वाला सुख
प्रेमानंद जी का मानना है कि, 'सत्कर्म का फल तुरंत नहीं दिखता, लेकिन वह स्थायी और गहरा होता है।' जब हम सत्य और नैतिकता के मार्ग पर चलते हैं, तो कठिनाइयां आती हैं, लेकिन यही संघर्ष हमें मजबूत बनाता है। सत्कर्म करने वाले व्यक्ति के मन में संतोष और आंतरिक शांति होती है, जो बाहरी सुखों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
पाप की कमाई का धोखा
प्रेमानंद जी बताते हैं कि, 'पाप से अर्जित धन मन को कभी चैन नहीं देता।' जो लोग गलत रास्ता अपनाते हैं, वे हमेशा अपने धन को लेकर चिंतित रहते हैं। यह तनाव उन्हें अंदर से खोखला कर देता है।
सत्कर्मी क्यों होते हैं संघर्षशील?
यह सवाल उठता है कि सत्कर्मी लोग मेहनत करते हैं, फिर भी उनकी स्थिति बेहतर क्यों नहीं होती? महाराज प्रेमानंद जी इसे एक प्राकृतिक प्रक्रिया बताते हैं। 'दूध आग में उबालने के बाद ही मलाई देता है।' सत्कर्मी लोग अपने संघर्ष के बाद ही स्थायी सुख पाते हैं।
अंत में क्या साथ जाता है?
प्रेमानंद जी का संदेश है कि, 'जब जीवन का अंत आता है, तब धन-दौलत कुछ भी साथ नहीं जाता। केवल आपका कर्म और आत्मा की शांति साथ जाती है।' इसलिए सत्कर्म करने वाले भले ही संघर्ष करें, लेकिन उनकी आत्मा संतुष्ट होती है। यही संतोष जीवन का सबसे बड़ा सुख है।
जीवन को सही दिशा देने के उपाय
प्रेमानंद जी के अनुसार, यदि हम सुख और शांति चाहते हैं, तो हमें धर्म और सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए। सत्कर्म और परोपकार को अपनाएं, भौतिक सुखों की लालसा कम करें और आंतरिक शांति की खोज करें। पाप से बचें, क्योंकि उसका परिणाम हमेशा दुखद होता है।
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